'जीवन विद्या' शिविर क्या है
'जीवन विद्या' हम मानवों के भौतिक, व्यावहारिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक आयामों पर तार्किक, समझने योग्य, जीने से जुड़ा प्रस्ताव है |
यह शिविर संवाद शैली में, बिना दबाव का खुला चर्चा है – जिससे श्रोता वास्तविकताओं को अपने निरीक्षण पूर्वक पहचान पाते हैं |
'जीवन विद्या शिविर' में विद्यार्थी, सामान्य गृहस्थ, शिक्षक, समाज के चिन्तक, इत्यादि सामान रूप में भागीदार होते हैं |
‘जीवन विद्या’ मानव में, सुख, शांति, विश्वास, एवं जाग्रति का मार्ग स्पष्ट करता है |
इससे हमारे वर्तमान के गंभीर समस्याएं – जैसे
- बच्चों में तनाव और 'जनरेशन गैप'
- व्यक्तिगत दिशाहीनता,
- संबंधों में भावात्मक समस्या,
- पारिवारिक टूटन,
- समाज में बढती भोग मानसिकता,
- शिक्षा का व्यवसायीकरण,
- धार्मिक संघर्ष,
- प्राकृतिक असंतुलन,
इत्यादि का समस्त समाधान स्पष्ट होता है | आइये, अपने आप को और अपने जीने को और निकटता और व्यापकता से देखें ...
स्वयं का अध्ययन करें
- मन-बुद्धि को सुलझाएं
- अपने जीवन दिशा में स्पष्टता पाएं
परिवार को समझें
- संबंधों में उदारता एवं स्नेह स्वीकारें
- समाज का पोषण करें
प्रकृति का परीक्षण करें
- प्राकृतिक क्रम-विकास को समझें
- प्रकृति के साथ सामंजस्य पाएं
वास्तविकता का अध्ययन करें
- यथार्थाओं को समझें
- सहअस्तित्व में जीयें
परिचय शिविर के पश्चात 'अध्ययन बिंदु' शिविर है |
पश्चात १० पुस्तकों सहित अध्ययन एवं अभ्यास है |
दार्शनिक आधार
'जीवन विद्या' श्री ए.नागराजजी द्वारा प्रतिपादित ‘मध्यस्थ दर्शन - सहअस्तित्ववाद’ का सामान्य परिचय है | यह 'दर्शन' मानव जाति के लिए एक नया ‘खोज’ है |
मध्यस्थ दर्शन वास्तविकता, चैतन्य मन-बुद्धि एवं मानव प्रयोजन का स्पष्ट अध्ययन 'सार्वभौम' विधि से कराता है | इसका तत्व एवं ज्ञान मीमांसा प्रस्तुत करता है |
यह दर्शन किसी भी अन्य परम्परा, ग्रन्थ, इत्यादि पर आधारित नहीं है | मध्यस्थ दर्शन 'रहस्य' एवं 'अंध विश्वास' से मुक्त है |
यह दर्शन, प्रचलन के आध्यात्मवाद एवं भौतिकवादी चिंतन के 'विकल्प' के रूप में प्रस्तुत है |
इन दोनों विचारधाराओं से 'बचे हुए उत्तर' मध्यस्थ दर्शन में सीधे वास्तविकताओं के आधार पर प्रस्तुत हैं |