प्रथम दिवस - परिचय
- वर्तमान स्थिति का अवलोकन - स्वयं, परिवार, समाज एवं प्रकृति में
- मानव के मूल प्रश्न - क्यों जीना ? कैसे जीना ?
- मानव की आधारभूत आवश्यकता = बौद्धिक, व्यावहारिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक आयामों में समाधान = सुख = ज्ञान
- समाधान = वास्तविकता को समझकर तदनुसार जीना =
- अस्तित्व सम्पूर्ण का ज्ञान, स्वयं का ज्ञान, मानवीय आचरण का ज्ञान = मेरा अस्तित्व में प्रयोजन/भागीदारी
- = व्यक्ति ,परिवार, समाज एवं प्रकृति में व्यवस्था को समझकर उसमें जीना
द्वितीय दिवस - स्वयं में व्यवस्था, सहअस्तित्व - चैतन्य (स्वयं) को समझना, अस्तित्व की समझ
- मानव चैतन्य और शरीर के रूप में
- चैतन्य एवं अन्य क्रियाओं में भेद - मान्यताओं की भूमिका
- 'चैतन्य' जीवन या स्वयं में क्रियाएं:
- आशा, विचार, इच्छा, बोध - मन, वृत्ति, चित्त, बुद्धि ...
- स्वयं में प्रयोजन विहीनता, समस्याओं के कारण एवं निवारण
- वास्तविकता के रूपात्मक एवं अरूपात्मक आयामों को समझने की आवश्यकता - रूप, गुण, स्वभाव एवं धर्म
दिवस ३ - परिवार में व्यवस्था, सहअस्तित्व - मानव संबंधों को समझना
- मानव संबंधों का मूल आधार एवं स्वरूप।
- विभिन्न सम्बन्ध - माता, पिता, पुत्र, पत्नी, गुरु, मित्र, इत्यादि।
- संबंधों में मूल्य एवं अपेक्षा - विश्वास, सम्मान, प्रेम, स्नेह, ममता….
- परिवार का स्वरूप, समस्याएं, समाधान।
दिवस ४ - समाज में व्यवस्था, सहअस्तित्व - निहित संबंधों एवं ढांचों को समझना
- वर्तमान मानव समाज के समस्या एवं उनका समीक्षा
- मानवीय समाज का सार्वभौम लक्ष्य
- 'मानवीय व्यवस्था' के लिए निम्न विधाओं में अवलोकन एवं प्रस्ताव
- शिक्षा-संस्कार, स्वास्थ्य, उत्पादन-कार्य, विनिमय कोष, न्याय-सुरक्षा
- मानवीय व्यवस्था के लिए परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था का प्रस्तावना
दिवस ५ - प्रकृति में व्यवस्था, सहअस्तित्व - वास्तविकता, प्रकृति एवं उसके आयामों को समझना
- रूप, गुण, स्वभाव, धर्म - पदार्थ, पेढ-पौधे, जीवों एवं मानव में
- प्रकृति में निहित अंतर-सम्बन्ध एवं आवर्तनशीलता
- प्राकृतिक असंतुलन के कारण एवं समाधान
दिवस ६ - अस्तित्व में व्यवस्था, सहअस्तित्व - वास्तविकता, ब्रह्माण्ड एवं प्रकटन को समझना
- वास्तविकता 'सहअस्तित्व' रूप में है = जड़ (भौतिक-रासायनिक) एवं चैतन्य इकाइयां शून्य में डूबे, समाहित हैं |
- शून्य - व्यापक, साम्य ऊर्जा है
- अस्तित्व में प्रकटन एवं विकास
- अस्तित्व में मानव का स्थान एवं प्रयोजन
- ज्ञान, विवेक, विज्ञान पर स्पश्टता
- ज्ञान = अस्तित्व, चैतन्य जीवन एवं मानवीय आचरण का
- विवेक - सत्य-असत्य पहचान, मानव लक्ष्य पहचान
- विज्ञान = प्रक्रियात्मक समझ = भौतिक विज्ञान, व्यावहारिक विज्ञान, अध्यात्म विज्ञान
दिवस ७ - प्रश्नोत्तर एवं सारांश
- इस दर्शन की भूमिका, शिविर क्रम हेतु अगले कदम
- सूर्य के इस ओर और उस और सभी मुद्दों पर खुला चर्चा !
- प्रतिभागी मूल्याङ्कन एवं प्रतिसाद
टिपण्णी*
प्रत्येक जीवन विद्या शिविर में वस्तु एवं क्रम प्रबोधक एवं श्रोताओं के अनुसार थोड़ा बदलता है | 'जीवन विद्या प्राथमिक परिचय शिविर' 'मध्यस्थ दर्शन अध्ययन बिंदुओं' का एक व्यावहारिक परिचय है | यह
श्री ए.नागराजजी द्वारा दिया 'प्रारंभिक पाठ्यक्रम है ' | यह अध्ययन बिंदु जीवन विद्या शिविर का आधार है, जो सह-अस्तित्ववाद में मूल अवधारणओं से अवगत कराता है (अध्ययन बिंदु) | अत : परिचय शिविर के दो स्तर हैं - १) प्राथमिक परिचय २) अध्ययन बिंदु (वस्तु) परिचय | उसके बाद 'अध्ययन' है |